कैवल्य क्या है?
प्रश्न: आचार्य जी, कैवल्य का वास्तविक अर्थ क्या है?
आचार्य प्रशांत: कहानी है एक छोटी सी। कुछ लोग एक खेत में चोरी करने गए हैं। वहाँ एक आदमी का पुतला खड़ा हुआ है, जो पक्षी भगाने के लिए खड़ा कर दिया जाता है। उसको देखकर वो लोग डर रहे हैं। फ़िर उसमें से एक आदमी भीतर जाता है, और देखकर, समझकर, प्रयोगकर के समझ जाता है कि ये एक पुतला है।
वापस आता है, बता भी देता है, तो भी जिनको बताता है, उनकी छाती धड़कती रहती है। कहते हैं, “तुमने बता भी दिया, तो भी हिम्मत नहीं पड़ रही है।” तो फ़िर वो किसी तरह से सबको भीतर लेकर जाता है, और वो उस पुतले को गिरा देते हैं। जब गिरा देते हैं, तब जाकर उनकी जान में जान आती है।
कहानी कहती है — “भय का कारण, भ्रांति मात्र है।” तुम जिससे डर रहे हो, गौर से देखोगे तो पाओगे कि — न सिर्फ़ वो डरावना नहीं है, बल्कि वो है ही नहीं।
तो अमर(प्रश्नकर्ता) ने पूछा है कि — “आचार्य जी, मैं लोगों के बीच ज़्यादा नहीं रहना चाहता। अकेला रहने में अधिक शांत और सुरक्षित महसूस करता हूँ। जानता हूँ कि कैवल्य ही परम सत्य है, और भीड़ भ्रम है, मैं अकेला ही रहना पसंद करता हूँ। क्या मेरा अकेलापन डर की वजह से है?”
अमर, ‘कैवल्य’ का भ्रांतिपूर्ण अर्थ निकाल लिया है तुमने। ‘आध्यात्मिक अकेलेपन’ का अर्थ, जीव का अकेला हो जाना, या पृथक हो जाना नहीं होता। ‘आध्यात्मिक अकेलेपन’ का अर्थ होता है कि — आत्मा मात्र है, और आत्मा निःसंग, असंग, अकेली है। दूसरा कुछ है नहीं।