कैद में हो, जूझ जाओ!
कसाई के पिंजड़े देखे हैं न? उसमें कुक्कड़ मुर्गा और गुटरी मुर्गी बैठकर चर्चा कर रहे हैं कि, “महाराष्ट्र का हाल भी कर्नाटक जैसा होगा?” और थोड़ी ही देर पहले उन्होंने देखा है कि पिंजड़े में एक हाथ भीतर आया था, एक को उठाया था, वहाँ ले जाकर के पत्थर पर रखा था, और खच!
या वो मुर्गा-मुर्गी बैठकर के कहें कि, “माता का व्रत रखते हैं”। क्या होगा रे? “आरती गाते हैं।” क्या? वहाँ अंदर एक ज्योतिषी भी है। वो कहता है मैं पंजे देखता हूँ। वो सबको उनके पिछले जन्म और अगले जन्म का हाल बता रहा है।
थोड़ा बड़ा पिंजरा है। उसके भीतर भूरी मुर्गी ने ब्यूटी पार्लर भी खोल रखा है। वहाँ चार-पाँच लाइन लगाकर के खड़ी हुई हैं। कह रही हैं, “मेरे पंख वगैरह… ज़रा चमका दो अच्छे से”। अभी ये नोचे जाएंगे! वहाँ पंख चमकाने के लिए खड़ी है। कह रही है, “नाखून अच्छे से क्लिप कर देना”। अभी इन्हें कुत्ते खा रहे होंगे सड़क के।
होश का मतलब यही होता है, अपनी वर्तमान हालत के प्रति ईमानदारी। असल में जानना भी नहीं, सिर्फ ईमानदारी। क्योंकि भाई जानते तो हम हैं ही। कौन है जो नहीं जानता?
हमें ज्ञान की नहीं ईमानदारी की कमी है।
हमें होश की नहीं साहस की कमी है।
सब जानते हैं पर भीतर इतनी तामसिकता भरी हुई है कि कौन संघर्ष करे इस कैद, इस पिंजड़े, इस कसाई के खिलाफ? तो अपने-आपको ऐसा जताओ, अपने ही प्रति ऐसा अभिनय करो जैसे सब ठीक चल रहा है। “सब ठीक ही तो चल रहा है।” सुबह-सुबह कुक्कड़ उठकर बोलता है, “गुड मॉर्निंग!” गुड मॉर्निंग? गुड मॉर्निंग? तेरे लिए…