केवल प्रेम ही अहंकार की दवा है

आचार्य प्रशांत: अब देखिए यहाँ पर किन-किन पशुओं के नाम वर्णित हैं — मयूर है, गरुड़ है, वाराह है, सिंह है, गजराज है, गीदड़ियों की आवाज़ की हम बात कर ही चुके हैं। ये इतने भाँति-भाँति के पशुओं का उल्लेख हमें क्या बताता है? ये सब पशु हमारे भीतर की पशुता के अलग-अलग रूप हैं। तो पशुता तो हमारे भीतर रहेगी ही, यह शरीर ही पशु है। यह शरीर ही पशु है तो पशुता तो रहेगी ही, बस क्या करना है? उस पशुता को समर्पित कर देना है, उसको एक सही दिशा दे देनी है…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org