केवल प्रेम ही अहंकार की दवा है

आचार्य प्रशांत: अब देखिए यहाँ पर किन-किन पशुओं के नाम वर्णित हैं — मयूर है, गरुड़ है, वाराह है, सिंह है, गजराज है, गीदड़ियों की आवाज़ की हम बात कर ही चुके हैं। ये इतने भाँति-भाँति के पशुओं का उल्लेख हमें क्या बताता है? ये सब पशु हमारे भीतर की पशुता के अलग-अलग रूप हैं। तो पशुता तो हमारे भीतर रहेगी ही, यह शरीर ही पशु है। यह शरीर ही पशु है तो पशुता तो रहेगी ही, बस क्या करना है? उस पशुता को समर्पित कर देना है, उसको एक सही दिशा दे देनी है, उसको चैनलाइज कर देना है।

प्रश्नकर्ता: शुरू में आचार्य जी, एक अवलोकन है इस बात से कि आज पहली बार समझ में आया है कि समानता होती क्या है, जो आपने आख़िरी में बताया वह। और दूसरा प्रश्न यह है कि जब हमने पहले सुना था कि अपनी आइडेंटिटी (पहचान) को ड्रॉप (त्याग) करना है, उसको सही तरह चैनलाइज करना है। तो दोनों ही बात सही हैं?

आचार्य: यह अपनी आइडेंटिटी मिटाने की विधि है। आइडेंटिटी तो तुम्हें मिटानी है पर कैसे मिटाओगे? यह विधि है। सच जो है, वह महासागर है। तुम्हारी सब जो आइडेंटिटीज़ हैं, तुम्हारी जो पहचानें हैं, वे छोटी-छोटी नदियाँ हैं, उनको मिटाने का तरीका क्या है? सच में मिला दो।

तो यह आइडेंटिटी को मिटाने से अलग बात नहीं की जा रही यहाँ, वही बात की जा रही है, उसको करने का तरीका बताया जा रहा है। स्वयं को मिटाना है तो स्वयं को स्वयं से बड़े किसी उपक्रम में लगा दो, तुम मिट जाओगे। स्वयं से आगे जाना है तो जो एकदम आगे का है, उसके पीछे हो जाओ। उसके पीछे-पीछे चल लो, ख़ुद से आगे निकाल जाओगे। यह विधि है, और कोई विधि नहीं है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org