केंद्र पर है जीवन शांत, सतह पर रहे तो मन आक्रांत

आजा का घर अमर है, बेटा के सिर भार।तीन लोक नाती ठगे, पंडित करो विचार।।~ संत कबीर

वक्ता: आजा से आशय है — मूल सत्य। वो मौन है, वो अनस्तित्व है, वो ही कबीर का बिंदु भी है। बेटा मतलब? जिसकी उत्पत्ति उस मूल होती हो। बेटा है अहम् वृत्ति- समस्त वृत्तियों की मूल वृत्ति। अहम् भाव वो बेटा है, और उन वृत्तियों से जो पैदा होता है वो नाती। उन वृत्तियों से पैदा होता है विचार और संसार।

बिंदु पर अमरता है क्योंकि मरण तो बहुत बाद की बात है, वो तो नाती के घर की बात है, वो तो विचार है। मूल पर तो न जीवन है, न मृत्यु है, मात्र स्रोत है, बिंदु है। उससे जो अहम् वृत्ति पैदा होती है कि- “मैं हूँ”, वही सारा बोझ है;बेटा के सिर भार’– मैं हूँ। ये जो “मैं हूँ” की वृत्ति पैदा होती है ये अपूर्णता साथ लिए होती है। ये इतने से संतुष्ट नहीं हो पाती है कि- “मैं हूँ”। या ये कह लीजिये कि जब ये कहती है कि, “मैं हूँ” तो उसमें छिपी भावना ये रहती है कि — “मैं अधूरी हूँ”।

अपने इस अधूरेपन को पूरा करने के लिए ये स्वयं से ही संसार को जन्म देती है, संसार इसी से उपजता है, और फिर ये संसार के ही विषयों से, वस्तुओं से या व्यक्तियों से सम्बद्ध हो कर स्वयं को पूर्णता देने की कोशिश करती है। तो ये जो तीन लोक हैं ये इसी वृत्ति से निकलते हैं। ये जो तीन लोकों का भ्रम चल रहा है, ये जो तीन लोकों का ठगा ठगी का कार्यक्रम चल रहा है ये इसी वृत्ति से निकलता है।

कबीर कह रहें है कि समझ लो उस बात को तो यही महाज्ञान है — ‘पंडित करो विचार’। बिंदु की लीला…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org