कृष्ण: देहधारी भी और देह के पार के भी
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अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।
मेरे परमभाव को न जानने वाले मूढ़ लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ संपूर्ण भूतों के महान् ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात् अपनी योग माया से संसार के उद्धार के लिए मनुष्यरूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं।
—श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ९, श्लोक ११
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, ग्यारहवें श्लोक में भगवान कृष्ण कहते हैं कि "मूढ़ लोग मेरे को साधारण मनुष्य ही जानते हैं और मेरी अवज्ञा करते हैं।" तो मैं जानना चाह रहा था कि इस मूढ़ता—मनुष्य जो मूढ़ है—इस मूढ़ता को ख़त्म करने की क्या प्रक्रिया है?
आचार्य प्रशांत: एक साहस जुटाना पड़ेगा, निर्णय करना पड़ेगा। यह मूढ़ता नहीं है, ख़ौफ़ है वास्तव में। देखिए, मनुष्य कहता है कि भौतिकता के अलावा, पदार्थ के अलावा दुनिया में कुछ है नहीं। मनुष्य कहता है कि आदमी-आदमी सब बराबर हैं—जैसे तुम आदमी, वैसे ही हम आदमी। कहता है, आदमी क्या है? तुम किसी के गर्भ से पैदा हुए हो, हम भी किसी के गर्भ से पैदा हुए हैं। सब बराबर हैं, कोई फ़र्क़ नहीं है।
अब ऐसे में अगर तुमने मान लिया कि सामने जो श्री कृष्ण खड़े हैं, वे दिखने में तुम्हारी ही तरह देहधारी हैं लेकिन वास्तव में वे तुमसे बहुत अलग हैं, बहुत आगे के हैं, बिलकुल कहीं और के हैं, तो फ़िर तुम्हारा अपनी हस्ती में जो यकीन है, वह तुम्हें तोड़ना पड़ेगा न। अभी तो तुम यह मान रहे हो कि मैं जैसा हूँ, यही आख़िरी बात है।
इंसान के लिए बहुत ज़रूरी हो जाता है सबको अपने जैसा मानना, क्योंकि वह जो सामने तुम्हारे देह में एक खड़ा है, वह अगर तुमसे बहुत ऊँचा है, तो फ़िर तुम्हारे ऊपर संकट आ जाता है। क्या संकट? कि अगर वह देहधारी होकर भी तुमसे इतना ऊँचा है, तो तुम भी देहधारी हो करके ये नीचाइयों में, कीचड़ में क्यों लोट रहे हो, भाई? आदमी यह ज़िम्मेदारी नहीं उठाएगा।
कृष्ण जैसे देहधारी होते हुए भी देह के पार के हैं, वैसे ही हम कृष्ण का उदाहरण मानते हुए अनुगमन करें उनका, हम भी कृष्ण की ऊँचाइयों को छुएँ। हम कृष्ण की ऊँचाइयों को छूने की जगह क्या करेंगे? कृष्ण को नीचे खींच लाएँगे। हम कहेंगे, “देखो, तुम भी हमारे जैसे हो, तो इसीलिए बहुत हुकुमबाजी तो करो मत।” कृष्ण साफ़-साफ़ कहते हैं कि आम आदमी मेरी सिर्फ़ अवज्ञा करता है, मेरी आज्ञा नहीं मानता। खूब झेला है उन्होंने, बड़े अनुभव से बोल रहे हैं, “आम आदमी बिलकुल मुझे अपने जैसा ही समझता है, देह के तल का।”
फ़िर, आगे उन्होंने उनके भी लक्षण बताएँ हैं जो लोग उनकी बातें सुनते हैं:
अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।