कृष्ण को चुनने दो कि कृष्ण का संदेश कौन सुनेगा

अर्जुन तुझे यह रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में तपरहित, भक्तिरहित और सुनने की इच्छा रखने वाले लोगों से नहीं कहना चाहिए। और जो मुझमें अर्थात कृष्ण में दोष दृष्टि रखता हो, उससे तो कभी नहीं कहना चाहिए।

~ श्रीमद् भगवद् गीता, १८ वां अध्याय, ६६ व श्लोक

आचार्य प्रशांत: कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि अर्जुन जो बातें मैं तुझसे कह रहा हूँ, यह कभी भी तपरहित, भातिरहित, और सुनने की इच्छा न रखने वाले लोगों से कभी मत कहना। और जो मुझमें दोष दृष्टि रखता हो, जो कृष्ण से भी ऊँचा कुछ और समझता हो, उससे तो बिल्कुल मत कहना।

किसे चाहिए, किसे मिलेगा, किसे नहीं मिलेगा, यह फैसला कृष्ण को करने दो। कृष्ण कह रहे हैं कि जो तपरहित, भक्तिरहित हैं, उन तक मेरी बातें मत पहुंचाना।

कृष्ण तक तो कृष्ण की ही बात पहुंचेगी और कृष्ण की इच्छा से ही पहुंचेगी।

और कृष्ण की इच्छा क्या है यह कृष्ण के अतिरिक्त कोई जान नहीं सकता। तो तुम्हारा काम तो यह है कि तुम सब तक पहुँचाओ, किस तक पहुंचेगी और किस तक नहीं यह कृष्ण जानें। तुम्हारा काम तो यह है कि तुम बादलों की तरह बरसो, अब कौन सा बीज अंकुरित होगा, फिर पल्लवित होगा, फिर व्रक्ष बन जाएगा, यह कृष्ण पर छोड़ो। तुम तो फैलाओ। कौन सी बात किसको कहाँ चोट कर जाएगी, तुम नहीं जानते। कौनसी बात किसके कहाँ काम आ जाएगी, यह तुम नहीं जानते। किसको तुमसे क्या मिल जाएगा, तुम नहीं जानते। और जिसको नहीं मिलना है, उसको नहीं ही मिलेगा। जिसको मिलना है उसको मिलने के तुम माध्यम बन जाओगे।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org