कृष्ण को चुनना ही जीत है

कृष्ण को चुनना ही जीत है

सञ्जय उवाच।

दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा। आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रतीत् ॥२॥

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्। व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥३॥

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि । युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥४॥

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् । पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः॥५॥

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् । सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥६॥

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥७॥

“संजय बताते हैं कि दुर्योधन द्रोणाचार्य को, पाण्डवों की पूरी व्यूह रचना की तरफ़ इशारा करके कुछ कहता है। कहता है, “ये जो सेना है सामने पाण्डवों की, इसमें भीम, अर्जुन जैसे महा धनुर्धर वीर हैं। सात्यकि विराट, महारथ द्रुपद, धृष्टकेतु, चिकितान्त, काशिराज, कुन्तीभोज पुरुजित, नरश्रेष्ठ शैव्य, युधामन्यु, उत्तमोजाभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र — ये सब महारथी सामने हैं। इसी तरीके से, हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! हे द्विजोत्तम! हमारे भी जो विशिष्ट योद्धा इत्यादि हैं, उनके मैं नाम आपको बताता हूँ।”

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १, अर्जुन विषाद योग, श्लोक २–७

आचार्य प्रशांत: ये बात थोड़ी विचित्र है। सेनाएँ जब आमने-सामने सजी हुई हैं, उस समय पर द्रोणाचार्य को जाकर, पांडवों की सेना के योद्धाओं का नाम बताने का तुक…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org