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कृष्ण का नित्य स्मरण कैसे किया जाए?

कृष्ण का नित्य स्मरण कैसे किया जाए?

प्रश्नकर्ता: प्रिय आचार्य जी, प्रणाम। गीता आदि ग्रंथों को दूर से ही पढ़ने का मन करता है, करीब से पढ़ने पर शांति की जगह अशांति मिलती है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि संसार का मूल कृष्ण ही हैं।

कबीर साहब भी कहते हैं -

कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढ़े बन माहि।
घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि॥

पर ये बात मेरे दैनिक जीवन में उतर नहीं पाती। बुरा लगता है कि जो शांति सर्वत्र ही है, वो मेरे जीवन में क्यों नहीं दिखती।

इसी प्रकार अन्य श्लोकों में श्रीकृष्ण कहते हैं कि “मेरी यह त्रिगुणमई माया अति दुष्कर है, परन्तु जो केवल मुझको ही भजते हैं, वो इस माया का उल्लंघन कर जाते हैं, वो इस माया को जीत जाते हैं।

तो आचार्य जी, कृष्ण सर्वत्र भी हैं और ढँके भी हैं, कृपया इस बात को और निरंतर भजने की बात को ज़िंदगी के तल पर लाकर समझाइए।

आचार्य प्रशांत: प्रश्न का सार समझ गए हैं? पूछा है कि अगर हैं सर्वत्र तो मुझे ही क्यों नहीं दिखते और कहा है कि “निरंतर भजना क्या होता है?” कह रही हैं कि जितना शास्त्रों को पढ़ते हैं, उतना खींझ उठती है। किस बात पर? कि शास्त्र कहते हैं कि वो-ही-वो है, तत्व-ही-तत्व है मात्र; कृष्ण-तत्व के अलावा अन्यत्र कहीं कुछ नहीं। और कह रही हैं कि “मैं तो माया में फँसी हूँ, मुझे तो कृष्ण कहीं दिखते नहीं, तो ये बात तो कुछ जमी नहीं।“

प्र२: आचार्य जी, श्रीकृष्ण ने तो माया को भी अपना कहा है और उससे तरने की भी बात कर रहे हैं। कितनी सरलता…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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