कुसंगति की शुरुआत कहाँ से होती है?

कुसंग की शुरुआत कहाँ से होती है? भीतर से होती है!

ऐसा नहीं है बाहर से कोई आएगा और आपको खराब करके, आपको कुसंगति के दाग देकर चला जाएगा — नहीं।

बाहर वाला बाद में आता है, आपने पहले भीतर निर्णय किया होता है कि मुझे ‘आत्मा’ प्यारी नहीं है, मुझे ‘सत्य’ प्यारा नहीं है, मुझे तो कुछ और ही प्यारा है, और जब आपने यह निर्णय कर लिया होता है, तब फ़िर बाहर कोई प्रकट हो जाता है आपके निर्णय को क्रियान्वित करने के लिए। वह जो बाहर वाला है, वह तो सिर्फ़ आपकी इच्छाएँ पूरी करने के लिए आया है।

इच्छाएँ आपके भीतर पहले ही जागृत हो चुकी थीं।

कुसंगति को बाहर मत समझ लेना। यह भूल हम बहुत करते हैं। हम बाहर वाले को भगा देते हैं यह सोचकर कि कुसंगति टल गई। कुसंगति टल नहीं गई है, कुसंगति भीतर है। एक बाहर वाला हटेगा, दूसरा कोई बाहर वाला, किसी और रूप में, किसी अन्य तरीके से सामने आ जाना है। आपको कुसंगति का दूसरा बहाना मिल जाना है।

बाहर जो आया है वह कुसंगति का बस बहाना है, असली कुसंगति भीतर होती है। इसीलिए बाहर वाले को हटाना अक्सर निष्प्रभावी रहता है।

बाहर वाला हट के भी नहीं हटता। भीतर से ज्यों ही कुसंगति हटती है, फिर बाहर वाला स्वयं ही झड़ जाता है। जैसे सूखा हुआ पत्ता, अब उसको हटाना नहीं पड़ता। आपका उससे आकर्षण, मोह ही ख़त्म हो जाता है। आप हट जाते हो उससे, उसे हटाना नहीं पड़ता। वह तो प्रतिनिधि था आपकी ही इच्छाओं का — आपकी इच्छा गयी, वह प्रतिनिधि गया।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org