कुविचार और सुविचार में अंतर कैसे करें?

जिसको हम सुविचार कहते हैं और जो कुविचार होता है, दोनों में एक मौलिक अंतर होता है। अंतर ये है कि कुविचार, विचारक को बचाने के लिए होता है। कुविचार वो, जिसकी चेष्टा है कि विचारक बचा रहे।

जो विचार बार-बार आता हो और आगे ना बढ़ पाता हो उसमें किसी तरीके की ऊँचाई, बेहतरी ना आ पाती हो उसी विचार को जान लीजिएगा कि वो कुविचार है। सुविचार की पहचान ये होगी कि वो क्रमशः क्षीण पड़ता जाएगा। कुविचार का काम है बने रहना और सुविचार का काम है मिट जाना। सुविचार ऐसा हठ नहीं करता कि वो बना ही रहेगा। कोई भी विचार आपके लाभ का है या नुकसान का है, ये आप इसी से जाँच लीजिये कि वो आपको प्रेरित करके बदल रहा है या नहीं?

जो बात मन में निरंतर घूम रही हो उस बात का उद्देश्य समाधान तक पहुँचना है ही नहीं, उस बात का उद्देश्य ही घूमना मात्र है।

सुविचार ये सुविधा देता ही नहीं कि सुविचार करते भर रहो। सुविचार इतनी मोहलत नहीं देगा। सुविचार की पहचान ही यही है कि वो तुम्हें ऊर्जा से, प्रेरणा से भर देगा और बदलाव के लिए विवश कर देगा।

जो विचार कुछ बदले नहीं, बस घूमता भर रहे उसको तुरंत जान लीजियेगा कि कुविचार है। ये मन की साज़िश है अपने ही खिलाफ़। हमारे लिए उम्मीद की बात ये है कि विचार जैसा भी हो, उसे चुनने की छूट हमें हमेशा उपलब्ध है।

विचार की शुरुआत अकस्मात हो सकती है पर विचार का मंडराना अकस्मात नहीं होता। सही विचार मन पर चढ़ा नहीं रहेगा, वो आपको सही कर्म करने पर मजबूर कर देगा।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org