कुमाता कौन और सुमाता कौन?
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जद्यपि जनमु कुमातु तें, मैं सठु सदा सदोस।
आपण जानि न त्यागहहिं, मोहि रघुबीर भरोस।।
~ संत तुलसीदास
आचार्य प्रशांत: कोई-कोई ही नहीं होता जिसका जन्म कुमाता से होता है। अगर आप इस श्लोक को सिर्फ प्रकरण के संदर्भ में देखेंगे तो आपको ऐसा लगेगा जैसे कि किसी पात्र-विशेष ने किसी संदर्भ-विशेष में यह बातें बोल दी हैं। नहीं, ऐसा नहीं है। इनकी प्रासंगिकता व्यापक है। जो कहा जा रहा है वो हम सब पर लागू होता है।
क्या कहा जा रहा है? “यद्यपि मेरा जन्म कुमाता से हुआ है और मैं सदा शठ हूँ और दोषपूर्ण हूँ, फिर भी मुझे रघुबीर का भरोसा है कि वे अपना जान के मुझे त्यागेंगे नहीं।” देह का जन्म जो तुम्हें दे, वो माता तो है लेकिन पूर्ण माता नहीं है अभी। चूँकि तुलसी कह रहे हैं — कुमाता, तो इसीलिए उसके साथ दूसरा शब्द भी रखना ज़रूरी है — सुमाता। जो तुम्हें पूरा जन्म दे दे, मात्र वही सुमाता है।
‘कु’ जब किसी शब्द के पहले लग जाता है तो उसका अर्थ होता है कि कहीं कुछ गड़बड़ हो गयी, कुछ चूक गया। और एक ही गड़बड़ हो सकती है, एक ही दोष हो सकता है कि आप पूर्णता से चूक जाओ। तो जब आपको जन्म मिले और पूर्ण जन्म न हो, तो उसको कुजन्म ही बोलेंगे। आपको यदि जन्म तो मिला लेकिन पूरा नहीं, तो अभी यह ‘कुजन्म’ ही है, क्योंकि जो अधूरा है, वही तो दोष का और कष्ट का कारण है न।
दुनिया भर की कलह, पीड़ा और आती कहाँ से है? अधूरेपन से। अहंकार किसका नाम है? अधूरेपन का। तो अगर अधूरा ही जन्म हुआ, तो बड़ी गड़बड़ हो गयी न! आ गया दुःख, आ गयी पीड़ा, उठ गया अहंकार। हमें जो जन्म साधारणतया मिलता है, वह अधूरा जन्म होता है। चूँकि अधूरा है इसीलिए उचित है उसको कहना कि वो अभी ‘कुजन्म’ है। और कुजन्म अगर तुम्हें मिल रहा है, तो कुजन्म जिससे मिला, वो कुमाता ही तो हुई।
कुमाता की परिभाषा ये: जो जन्म तो दे दे पर पूरा जन्म न दे पाए।
और यदि कुमाता से पैदा हुए हो तो पक्का है कि तुम कौन हुए? कपूत। अधूरा जन्म किससे मिला? कुमाता से। और अधूरा जन्म किसको मिला? कपूत को।
अधूरा क्यों? समझेंगे। अधूरा इसलिए क्योंकि सीमित हो और सीमित रहने से राज़ी नहीं हो। अस्तित्व नहीं आ करके कह रहा है कि तुम अधूरे पैदा हुए हो, तुम ख़ुद कह रहे हो कि तुम अधूरे हो। तुम अगर ये न कह रहे होते कि तुम अधूरे हो, तो पैदा होते ही रोते क्यों? और पैदा होते ही तुम्हारी आँखें बाहर की ओर क्यों देखतीं? और तुम्हारे हाथ दूसरों की ओर क्यों बढ़ते? कुछ पाने के लिए ही तो।
देखो कि पैदा होते ही तुम्हारी परिभाषा किसी चीज़ से, किसी और से संयुक्त होकर ही की जा सकती है। पैदा हुए हो तो किसी की बाँह…