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कुछ लोग राष्ट्रवाद को बुरा क्यों मानते हैं?

प्रश्न: नमस्कार, राष्ट्रवाद के बारे में आपका क्या कहना है?

आचार्य प्रशांत: शब्द एक है, राष्ट्रवाद, पर मोटे तौर पर इसके अर्थ दो हैं। दोनों को अलग-अलग समझना पड़ेगा।

इंसान के पास हमेशा दो रास्ते होते हैं न, वैसे ही समझ लो बहुत सारे शब्द हैं जिनके उन्हीं दो रास्तों के समानांतर दो अर्थ होते हैं। एक रास्ता होता है आत्मा का, एक रास्ता होता है अहम का; एक रास्ता होता है मुक्ति का, एक होता है बंधन का; एक रोशनी का, एक होता है अंधेरे का। तो इसी तरीक़े से जो व्यक्ति राष्ट्र की बात कर रहा है, वह भी दो केंद्रों से राष्ट्र की बात कर सकता है।

साधारणतया जो व्यक्ति राष्ट्र की बात कर रहा होता है, वो बस यह कह रहा होता है कि — "जो लोग मेरे जैसे हैं, उनका दूसरों पर, और दुनिया पर वर्चस्व रहे, ये मेरा राष्ट्रवाद है।" राष्ट्र समझते हो न क्या होता है? एक जनसमुदाय का नाम होता है 'राष्ट्र'। राष्ट्र, राज्य नहीं होता। राष्ट्र आवश्यक नहीं है कि कोई राजनैतिक इकाई हो। कोई भी लोग जो एक विचारधारा के हों, या उनका एक-सा उद्गम हो, एक-सी एथनिसिटी हो, या एक धर्म के हों, ये सब आपस में मिल करके, ये पूरा जो जनसमुदाय है, ये एक 'राष्ट्र' या एक 'नेशन' कहला सकता है। ठीक है न?

राष्ट्र ‘नेशन’ है, राज्य ‘नेशन स्टेट’ है, या 'कंट्री' है—इन दोनों में अंतर होता है। तो राष्ट्र माने कि कुछ लोग हैं जो किसी कारण से आपस में एक-दूसरे को एक-दूसरे से संबंधित समझते हैं। मान लो सौ लोग हैं, ठीक है, और वो सब मानते हैं कि उनका जो पारस्परिक, सामूहिक उद्गम है, वो एक ही है। मान लो, मानते हैं कि वो सब सूर्य से उतरे हैं जमीन पर, ठीक है? कुछ कहते हैं अपने आप को —ऐसा हुआ था, वैसा हुआ था और सूर्य से ज़मीन पर आ गए। तो अब संभावना है कि ये…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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