किसे बदलना चाहिए और किसे नहीं?

जिसको बदलना चाहिए वो ही बदले, जिसको नहीं बदलना चाहिए वो बिलकुल न-बदले।

जो बाहरी है, बदलना उसकी प्रकृति है, और वो बदलेगा, बहुत अच्छी बात है कि बदले, उसके बदलने के रास्ते में रोड़े मत अटकाना, और कुछ तुम्हारे भीतर ऐसा है, जो बदल सकता ही नहीं, उसको कोशिश भी न करना की बदल जाए।

पर हम जीवन बिलकुल उलटे तरह से जीते हैं, जो कुछ बदलेगा उसको हम रोकने की कोशिश करते हैं कि काश यह न बदले, और वो जो स्थिर है, शाश्वत है, उसका हमें कुछ पता होता नहीं, बाहरी चीजें, जैसे तुम्हारे आसपास जो लोग हैं, तुम्हारे रूपए-पैसे इन सब को तुम कोशिश करते हो कि यह कभी न जाएं, यह कभी न बदलें, आज जैसा है सदा वैसा रहे, जबकी यह पक्का है कि यह बदल जाना है।

शरीर है, इसको तुम चाहते हो कि आज जैसा है, बना रहे ऐसा ही, क्योंकि यह भी पक्का है कि यह बूढ़ा होगा, मर जायेगा, बदलेगा, जहाँ तुम्हें यह विचार करना ही नहीं चाहिए कि कुछ न बदले वहाँ पर भी तुम बदलाव को रोकने की कोशिश करते हो जो की पागलपन है, क्योंकि तुम्हारे कोशिश करने से कुछ होगा नहीं, बदलना उसकी प्रकृति है, वो बदलता रहेगा।

दूसरी तरफ, तुम्हारा जो दूसरा सिरा है, वो एक ऐसे आयाम में है, जो समय के पार है, हमनें कहा जो कुछ समय में है वो बदलेगा, तुम दो आयामों में होते हो, एक तो वो जो लगातार बदल ही रहा है, जो समय है, आकाश है, पदार्थ है।

और दूसरी वो जो कभी बदल सकती नहीं, जो समय के पार है, उस आयाम का तुम्हें कुछ पता नहीं, उसका बिलकुल होश नहीं, चूँकि उसका होश नहीं है इसलिए तुम स्थिरता को वहाँ…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org