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किसी को सभी मूर्ख बनाते हों तो?

सड़क पर एक हॉकर घूम रहा है, खुदरा, छोटी चीज़ों का विक्रेता। और सड़क पर बहुत लोग आ-जा रहे हैं। वो किसको पकड़ता है? वो किसके पीछे-पीछे दौड़ता है? मान लीजिए उसके पास जो माल है, वो सस्ता है, नकली है, घटिया है, पर फिर भी वो तो बेचने की ही कोशिश कर रहा है। उसे तो अपना सीमित, व्यक्तिगत स्वार्थ ही दिख रहा है। पर अपनी उस नकली चीज़ को बेचने के लिए, वो किसके पास जाकर के ललचाता है? वो किसको झांसा देते हैं? क्या सबको? नहीं। वो भी परख रहा है कि यहाँ पर कौन है जो बुद्धू बन जाएगा।

तो अगर आप ये कहते हैं कि लोग आपको बार-बार आकर बुद्धू बना जाते हैं, तो आप साफ़-साफ़ समझ लीजिए कि आप कुछ ऐसा कर रहे हैं, आप कुछ ऐसा जी रहे हैं, जिससे पूरे ज़माने को खबर लग रही है कि आपको बुद्धू बनाया जा सकता है।

देखा है न, खिलौने बेचने वाला होगा, बिंदिया बेचने वाला होगा, चश्मे बेचने वाला होगा, ये सब अपना सामान बेचने के लिये सड़क पर घूमते रहते हैं, पर ये सबके पास नहीं जाते। ये भी ख़ूब जानते हैं कि किसको झांसा दे सकते हैं, उसी के पास जाते हैं। तो ऐसा नहीं है कि बाकियों से ये डर गए।

तो बात हिम्मत की नहीं है कि वो उनसे डर गए इसीलिए उनके निकट नहीं गए।

वो उनके निकट इसीलिए नहीं जाएँगे, क्योंकि वो उनको समझदार देखेंगे, होशियार देखेंगे।

वो उनके निकट इसीलिए नहीं जाएँगे क्योंकि उनको पता है कि वहाँ उनका स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा।

उनको पता है कि उनके पास जाकर वो बेवक़ूफ़ नहीं बना पाएँगे।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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