किसी के साथ रहने पर अकेलापन दूर क्यों होता है?

जब तक दूसरा व्यक्ति तुम्हारे साथ नहीं है तब तक अकेलापन खाए जाता है। जब दूसरा व्यक्ति साथ आता है तब अकेलेपन के हटने की सम्भावना पैदा होती है। लेकिन वो सम्भावना साकार तभी हो सकती है जब दूसरे व्यक्ति के साथ तुम बेहोश हो जाओ। दूसरे व्यक्ति के साथ रहते हुए भी यदि तुमने अपनी ‘चेतना’ थोड़ी भी जागृत रखी, तो तुम पाओगे कि दूसरे के साथ होते हुए भी तुम बड़े अकेले हो। यही वजह है कि हम अपने अकेलेपन में तो फिर भी थोड़ा होश बरकरार रख लेते हैं, जब दूसरे की संगत में आते हैं तब हमारे लिए बेहोश होना अनिवार्य हो जाता है। क्योंकि उस बेहोशी में ही तुम्हें अकेलेपन के मिटने की अनुभूति होगी।

तुम दूसरे की संगत कर ही इसीलिए रहे हो न कि अकेलापन मिटे? पर दूसरे की संगत अकेलापन नहीं मिटाती तुम्हारा। दूसरे की संगत में तुम पर जो बेहोशी छाती है वो तुम्हारा अकेलापन मिटाती है। उस बेहोशी को अपने ऊपर छाने देना या न छाने देना चुनाव होता है। दूसरे की संगती में तुम्हारे लिए और ज़रूरी हो जाता है कि तुम बेहोश हो जाओ, नहीं तो रिश्ता ही बना नहीं रहेगा। दूसरा तुम्हारे साथ है और उस वक्त तुम अपनी चेतना बरकरार रख लो, रिश्ता टूट जाएगा। जब तुम दूसरे के साथ हो, ख़ास तौर पर उसके साथ जो तुम्हारा अकेलापन मिटाने का साथी है, और तुम अपनी चेतना सुदृढ़ रख लो, तुम उससे बातचीत ही नहीं कर पाओगे। तो ये मत कहो कि दूसरे के साथ रहने से अकेलापन मिटता है। ये कहो कि दूसरा जब निकट आता है तो एक परस्पर बेहोशी का मादक माहौल छा जाता है। उस मादक माहौल में हम सो जाते हैं, नशे में आ जाते हैं, लगता है जैसे अकेलापन मिट गया। एक सपना छा जाता है और लगता है अकेलापन मिट गया।

अकेलापन मिटा नहीं है बल्कि और गहरे गिर गए हो, और गड्ढे में गिर गए हो।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org