किसने बाँध रखा है तुम्हें?

प्रश्न: आचार्य जी, माँ-बाप के चंगुल से कैसे छूटूँ? जब भी वो मुझसे कुछ कहते हैं, मैं मन-ही-मन उनके खिलाफ़ सोचता हूँ, लेकिन कह नहीं पाता। हालाँकि मुझे पता है कि उन्होंने मेरे लिए बहुत सारे संघर्ष किए हैं, लेकिन फ़िर भी मैं उनकी बातों से सहमत हो नहीं पाता, और बंधा हुआ महसूस करता हूँ।
क्या करूँ?
आचार्य प्रशांत: नीरज, सैंतीस वर्ष के हो, तो माँ-बाप तो अब सत्तर के पहुँच रहे होंगे। कह रहे हो कि —…