किसको मूल्य दे रहे हो?

नाम राम को अंक है, सब साधन है सून।

अंक गए कुछ हाथ नहिं, अंक रहे दस गून।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: तुमने अपनी ज़िंदगी में जो इकट्ठा किया है, सब ‘सून’ है। अब सून को सूना मानो चाहे शून्य मानो — असल में दोनों एक ही धातु से निकलते हैं। जिसे तुम कहते हो न ‘सूनापन’, वो शून्य से ही आता है। तुमने ज़िंदगी में जो कुछ इकट्ठा किया है, वो सून है, वो शून्य है। वो तुम्हें सूनापन ही दे जाएगा। उसकी कोई कीमत नहीं है। और तुम बहुत सारे शून्य इकट्ठा करके बैठ गए हो। शून्य माने वो जो मूल्यहीन है। शून्य माने क्या? जिसकी कोई कीमत नहीं। तुम ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा इकट्ठा करके बैठ गए हो।

वो सब हटाना नहीं है। तुलसी विधि दे रहे हैं जीवन जीने की। वो सब हटाओ नहीं जो इकट्ठा किया है। जो इकट्ठा किया है, ठीक है, उसमें अंक जोड़ दो — ‘एक’ जोड़ दो। ‘एक’ माने? “एको अहं, द्वितीयो नास्ति”। किसके लिए? एक कौन है जो एक ही है? क्या नाम है उसका जो बस एक है?

प्र: एक ओंकार।

आचार्य: एक ओंकार। और?

प्र: ब्रह्म।

आचार्य: ब्रह्म। और?

प्र: ईश्वर।

आचार्य: ईश्वर। और?

प्र: राम।

आचार्य: राम। और?

प्र: कृष्ण।

आचार्य: वो एक है, दूसरा नहीं है। उस एक को जोड़ दो अपने सारे शून्यों में, तुम अरबपति हो जाओगे। और उस एक के बिना तुम्हारे शून्य…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org