कितना कमाएँ, किसलिए कमाएँ?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जो आप कमाई की बात कर रहे हैं कि “जो समय बीत रहा है उसमें कमाई क्या करी?” तो, क्या इसका मतलब सिर्फ जो ये षडरिपु हैं, इनसे छुटकारा है?

आचार्य प्रशांत: बस यही, और कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं। असल में, कमाई का और कोई अर्थ होता भी नहीं है।

कबीरा सो धन संचिए, जो आगे को होय।

जो तुम्हें आगे ले जा सके, किससे आगे ले जा सके? शरीर से, प्रकृति से जो आगे को ले जा सके, उसी का नाम धन है। धन और कुछ नहीं होता। रुपये, पैसे, करेंसी (मुद्रा) को धन नहीं कहते, भाई। धन की जो व्युत्पत्ति भी है, वो क्या है?

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org