कालातीत योग और समकालीन चुनौतियाँ

योग के सामने कोई चुनौतियाँ नहीं होती। योग तो मन की सहायता हेतु है। मन चुनौतियों से घिरा हुआ है, मन की सहायता के लिए योग है।

आपने कहा, “समकालीन चुनौतियाँ,” काल ही मन के लिए होता है। काल के अनुसार मन के सामने चुनौतियाँ बदलती जाती हैं। अलग-अलग समय में मन के लिए अलग-अलग तरह के विक्षेप होते हैं, राग होते हैं, द्वेष होते हैं, समस्याएँ होती हैं।

मन योगस्थ हो सके, मन हृदय से मिल सके, आत्मा में लय हो सके — इसके सामने आज क्या चुनौती है? आज का आदमी सहजता से योगस्थ क्यों नहीं हो पा रहा है? पतंजलि शुरुआत करते हैं। कहते हैं, “योगस्थ चित्त वृत्ति निरोधः।”

चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। निरोध हो सके चित्त की वृत्तियों का, इसके लिए आवश्यक है सर्वप्रथम कि चित्त की वृत्तियों का पता तो चले। चित्त की वृत्तियाँ, वृत्ति रूप में, समस्या रूप में, सामने खड़ी तो हों!

आज के समय को देखें तो वृत्तियों के संदर्भ में दो बातें साफ़ नज़र आएँगी।

पहली ये कि ज्ञान के सहारे विज्ञान, और तकनीक के सहारे चित्त ने बड़ा बल पा लिया है, बहुत कुछ कर डाला है। और जो कुछ कर डाला है वो भौतिक दृष्टि से, दैहिक दृष्टि से उपयोगी भी है। उसकी उपयोगिता से इंकार नहीं किया जा सकता। तमाम इमारतें खड़ी हैं, चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति हुई है, अणु तोड़ डाले गए हैं, परमाणु की ऊर्जा का उपयोग हो रहा है।

आदमी प्रकृति पर प्रधान हो गया है, तो वृत्ति ने बहुत बल पा लिया है। जो बलशाली हो जाता है, उसका निरोध आसान नहीं रह जाता।

आदमी हिंसक था, और हिंसा की वृत्ति ने उसे हिंसा हेतु तमाम प्रत्यक्ष-परोक्ष साधन दे दिए हैं — वो साधन आज बहुत बलवान हो गए हैं। एक मिसाइल भी हिंसा का बहुत बलवान साधन है, और एक बड़ी कार भी हिंसा का बहुत बलवान साधन है! ज्ञान भी हिंसा का बलवान साधन है। ऐसे साधन आज जितने प्रचुर हैं, इतने कभी नहीं थे।

हम वृत्ति के निरोध करने की बात करें, उससे पहले वृत्ति के बारे में ये मूलभूत बात है जो हमें पता होनी चाहिए कि — हम जिसका विरोध करने निकले हैं, हम जिसका निरोध करने निकले हैं, हम जिसका दमन करने निकले हैं, हम जिसका शमन करने निकले हैं, जिसको शांत करने निकले हैं, वो आज बहुत ताकतवर हो चुका है।

पतंजलि के समय से दुनिया बदल गई है।

मूल वृत्ति, अहम्-वृत्ति ही है, जीव-वृत्ति ही है, मृत्यु-वृत्ति ही है। लेकिन समय के साथ उसने बड़ा बल अर्जित कर लिया है। आज उसके वेग को झेलना उतना आसान नहीं जितना शायद पतंजलि के समय में था। आप जिधर देखिए उधर आपको मनुष्य की वृत्ति का ही पसार नज़र आता है। आपको क्या लग रहा है…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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