काम बिगड़ते हैं क्योंकि तुम बहुत ज़्यादा करने की कोशिश करते हो
प्रश्नकर्ता (प्र): सर, सच्चा आनंद क्या है जीवन में?
आचार्य प्रशांत (आचार्य): झूठा आनदं भी कुछ होता है?
होता है, तुम्हें झूठे आनंद की ऐसी लत लगाई गई है कि अब तुम्हें पूछना भी होता है तो पूछते हो, ‘सच्चा आनंद क्या है?’ तुम्हें किसी से बोलना भी होता है कि प्रेम करते हो तो तुम जाकर बोलते हो, ‘मैं तुमसे सच्चा प्रेम करता हूँ’, तो सच्चा प्रेम तो वही बोल सकता है जिसने झूठा बहुत किया हो! जिसने मात्र प्रेम जाना हो वो तो कहेगा नहीं कि मैं सच्चा प्रेम करता हूँ, पर झूठा तुमने इतना ज्यादा जाना, और ऐसी आदत लगी है, कि वैसी ही बात कि मैं तुमसे कहूँ कि ‘ज़रा पानी लाना पीने का’, और फिर कहूँ, ‘साफ़ लाना’।
अरे पानी मंगा रहा हूँ तो साफ़ ही लाओगे! पर अगर मुझे शक है कि खुराफात होगी तो मैं कहूँगा कि ‘जरा साफ़ लाना’, नहीं तो ये कहने का क्या प्रयोजन कि साफ़ लाना! अरे पानी है पीने का तो साफ़ ही होगा।
प्र: सर, हमें वर्तमान में रहना है और उसके हिसाब से काम करना है…
आचार्य: वर्तमान ही काम है, बिना वर्तमान में रहे तुम काम कैसे करोगे, लेकिन तुम बिना वर्तमान में रहे काम करते हो, कैसे?
फिर तुम जो काम करते हो वो तुम अपनी सोच के मुताबिक करते हो, सोच कभी वर्तमान में नहीं होती है, विचार कभी भी वर्तमान में नहीं होते, अगर तुम समझते हो तो काम अपने-आप होगा, अगर सच में समझते हो तो काम अपने-आप होगा, तुम्हें काम करने का प्रयास नहीं करना होगा।