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काम तो आपके वही आएगा, जो किसी के भी काम आ सकता है, वो है सत्य।
काम तो राम ही आएगा।
आपकी सारी बातचीत के बाद, आपके सारे प्रत्यनों और प्रार्थनाओं के बाद, अंततः काम तो राम ही आना है।
आदतों पर चर्चा काम नहीं आएगी।
समस्त साधना निष्फल ही जाएगी। कुछ नहीं है जो शान्ति देगा आपको, यदि वह राम के अतिरिक्त किसी और को केंद्र में रख कर चल रहा है।
राम को केंद्र में रखें। सत्य को केंद्र में रखें। और ये सब उपद्रव चलने दें। प्रपंच है, खेल है, चलता रहे।
आप मुक्त हो जाएँ। चलता रहेगा, आप मुक्त हो जाएँगे।
अध्यात्म तो उनके लिए है, जिन्हें कुछ ऐसा मिल गया है, जिसके उपरांत उन्हें सुखी होने की आवश्यकता नहीं महसूस होती और दुखी होने से डर नहीं लगता।
दुःख के लिए तैयार रहो। सुख की अपेक्षा मत कर लेना। सत्य ने कोई दायित्व नहीं ले रखा है तुम्हें सुख देने का, और सुख और आनंद में कोई रिश्ता नहीं। सत्य में आनंद ज़रूर है। सुख नहीं।
आध्यात्मिकता का, किसी भी रुचिकर अनुभव से कुछ लेना देना नहीं!
जिन्हें अभी अनुभवों की तलाश हो, वो आध्यात्मिकता से दूर रहें!
~ आचार्य प्रशांत