कामवासना कर देती है पागल!
आचार्य प्रशांत:
ज़रा भीतर जाकर के देखा करो,
थोड़ा वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखो,
ज़रा खोजी का चित्त रखो।
नहीं हैं चीज़ें वैसी जैसी दिखाई पड़ती हैं। नहीं है दुनिया वैसी जैसी तुम्हें प्रकट होती है। और चीज़ें तो वैसी दिखाई भी नहीं पड़ती जैसी कि वो चीज़ भी है, ख़ासतौर पर इंसान तो दिखाई भी तुम्हें वैसे पड़ते हैं जैसे वो चाहते हैं तुम उन्हें देखो।
कहते हो कि कोई देवी जी हैं जो तुमको बहुत भा गई हैं। ये तुम्हें तब ही दिखाई पड़ती होंगी न जब ये पूरा साज-श्रृंगार करके तुम्हारे सामने पड़ती होंगी? तो…