कामनाग्रस्त मन जगत में कामुकता ही देखेगा

जब काम को समझा नहीं जाता, तो वो बिल्कुल हावी हो जाता है मन पर। वो फिर एक रोज़मर्रा की, आमतौर की छोटी घटना बन कर नहीं रह जाता, फिर वो जीवन का एक हिस्सा नहीं, वो जीवन पर छाया हुआ बादल बन जाता है जिसने सब कुछ ढँक रखा है। मेरा उठना, बैठना, सोना, छूना, सोचना, सब काम से भरा हुआ है। मैं खाता भी हूँ तो वहाँ पर मुझे काम ही काम दिखाई देता है। मेरे जितने चुटकुले हैं, वो सब काम से संबंधित हैं। मेरी भाषा भी ऐसी हो गयी है कि उसमें…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org