कामनाग्रस्त मन जगत में कामुकता ही देखेगा

जब काम को समझा नहीं जाता, तो वो बिल्कुल हावी हो जाता है मन पर। वो फिर एक रोज़मर्रा की, आमतौर की छोटी घटना बन कर नहीं रह जाता, फिर वो जीवन का एक हिस्सा नहीं, वो जीवन पर छाया हुआ बादल बन जाता है जिसने सब कुछ ढँक रखा है। मेरा उठना, बैठना, सोना, छूना, सोचना, सब काम से भरा हुआ है। मैं खाता भी हूँ तो वहाँ पर मुझे काम ही काम दिखाई देता है। मेरे जितने चुटकुले हैं, वो सब काम से संबंधित हैं। मेरी भाषा भी ऐसी हो गयी है कि उसमें सिर्फ काम भरा हुआ है।

आपने गौर किया? आप व्यक्ति को व्यक्ति की तरह संबोधित नहीं करते, आप कहते हो, ‘वो जा रहा है, वो जा रही है’, आपने कोई और सूचना उसके बारे में नहीं दी पर एक सूचना ज़रूर दी, क्या? कि उसका लिंग क्या है। कुछ और आप न बताइए पर ‘जा रही है’, इतना तो पता चल गया कि मादा है। आपने नहीं बताया कि उसके बाकी गुण क्या है, पर भाषा ही ऐसी कर दी है कि वो लिंग ज़रूर बता दे — ‘लड़का-लड़की’। दुनिया की हर भाषा यह काम करती है, कि जैसा हमारा मन है सेक्सुअली ग्रस्त, वैसी ही हमारी भाषा है। दुनिया की हर भाषा सेक्सुअली ग्रस्त है।

आप कभी यह नहीं कहते कि अलग-अलग शब्द इस्तेमाल करो। अगर एक बुद्ध जा रहा हो और एक मूढ़ जा रहा हो। आप अलग-अलग शब्द इस्तेमाल नहीं करोगे, पर हाँ, एक पुरुष जा रहा हो, एक स्त्री जा रही हो तो आप निश्चित रूप से अलग शब्द इस्तेमाल करोगे।

इसका मतलब क्या है?

इसका मतलब है कि आपका मन सर्वप्रथम लिंग देखता है, और यह कैसा मन है!

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org