कर्म और निःस्वार्थ भाव
जो व्यक्ति दफ्तर में कुछ नहीं करता
यदि उससे उसे दो पैसे का
लाभ न हो रहा हो,
तो वो घर में भी कुछ नहीं करेगा
यदि उससे उसे लाभ न हो रहा हो।
क्योंकि उसके मन को पूरे तरीके से
लाभ के लिए ही संस्कारित
कर दिया गया है।
जब आप दफ्तर में लगातार
अर्थ का पीछा कर रहे होते हो
तो घर में भी निःस्वार्थ नहीं हो सकते।
निःस्वार्थ होना तो मन का एक माहौल है।
वो माहौल जगह के साथ बदल नहीं जाता।
जो कर्म फ़ल का पीछा नहीं कर रहा है,
वो कर्म फ़ल का ख्याल न बाज़ार में करेगा,
न घर में करेगा, न दफ्तर में करेगा,
न मंदिर में करेगा,
न अकेले में करेगा,
न भीड़ में करेगा।
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