कर्म, अकर्म, विकर्म, सकाम कर्म, निष्काम कर्म!
प्रश्नकर्ता: गीता में श्रीकृष्ण तीन तरीके के काम का ज़िक्र करते हैं: सकाम कर्म, कर्म, अकर्म और विकर्म। तो इनमें क्या भेद है?
आचार्य प्रशांत: कर्म, अकर्म, विकर्म, सकाम कर्म, निष्काम कर्म। चलो समझते हैं। संसार माने गति। प्रकृति माने परिवर्तन, समय माने परिवर्तन। ये पाँच तरह के कर्म क्या हैं इस पर थोड़ा ग़ौर करने जा रहे हैं।
प्रकृति माने गति, प्रकृति माने परिवर्तन, समय माने परिवर्तन, स्थान माने परिवर्तन। कुछ गति ऐसी होती है जिसके पीछे कोई कर्ता नहीं होता, जिसके पीछे अहम् नहीं होता। अहम् ने संकल्प नहीं लिया होता गति करने का, गति यूँ ही हो रही होती है मात्र प्राकृतिक तरीके से, जैसे बाहर उस पत्ते का हिलना या हवा का बहना। जैसे बाहर हवा बह रही है, जैसे पेड़ का पत्ता हिल रहा है, ठीक उसी तरीके से पेड़ की शाखाओं में रस भी प्रवाहित हो रहा है और उसी तरीके से आपके शरीर में रक्त प्रवाहित हो रहा है। रक्त का प्रवाहित होना भी गति है पर उस गति के पीछे कोई कर्ता नहीं है, और अगर कर्ता है भी तो उसका नाम है प्रकृति। अहम् नहीं है कर्ता। ऐसी गति को कहते हैं अकर्म।
अकर्म माने वो कर्म जिसके पीछे अहम् नहीं है कर्ता। ये आपकी प्राकृतिक गतिविधियों को दिया जाने वाला नाम है। पलक का झपकना अकर्म है। नींद में खर्राटे लेना अकर्म है। भले ही कोई कहे कि, “मैंने खर्राटे लिए”, पर वास्तविक बात ये है कि तुमने लिए नहीं, वो बात प्रकृति की थी। साँस का चलना अकर्म है।