कर्मों का खेल
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कर्मों के बारे में कुछ कहेंगे? कर्म क्या चीज़ है?
आचार्य प्रशांत: हमारे कर्म तो सही चीज़ को पाने का ग़लत प्रयास हैं। जो गहरी नीयत है वो तो ठीक ही है कि शान्ति मिल जाए, पर जो प्रयास की पूरी दिशा है, प्रयास करने वाले का जो केंद्र है, वो गड़बड़ है। प्रयास करने वाले का केंद्र जैसे नीयत से मेल ही ना खाता हो।
हर कर्म के पीछे एक गहन आकांक्षा होती है। हमारी त्रासदी ये है कि हमारा जो कर्ता है वो उस आकांक्षा से दूर हो गया है। जैसे आपका हाथ हो, आपका ही है लेकिन पगला गया है, ऐसा हाथ। अब आप चाह तो रहे हो वो आपको पानी पिलाए पर वो कँप रहा है, जैसा कई बार कई बीमारियों में या…