कर्मयोग से जुड़ीं सावधानियाँ!

कर्मयोग से जुड़ीं सावधानियाँ!

आचार्य प्रशांत: श्रीमद्भगवद्गीता, कर्मयोग, तीसरा अध्याय, छब्बीसवाँ श्लोक।

अर्जुन को सिखा रहे थे कि कर्म से पीछे हटना संभव नहीं, बस ख़्याल ये रहे कि कर्म निष्काम रहे। ठीक? यहाँ तक स्पष्ट है? घोर कर्म, निस्वार्थ होकर। और अगर निस्वार्थ नहीं हो तो घोर कर्म वैसे भी नहीं होता, बीच में ऊर्जा ख़त्म हो जाती है।

अब आगे क्या कह रहे हैं?

कह रहे हैं, ‘अर्जुन, अगर तुमने कर्म त्याग दिया, तो उसका एक और व्यावहारिक, ज़मीनी परिणाम क्या होगा थोड़ा ध्यान दो।‘ कह रहे हैं, ‘उसका ये परिणाम होगा कि जो अकर्मण्य और आलसी, प्रमादी लोग हैं, जो दूसरों के पीछे-पीछे चलते हैं, वो कहेंगे कि जब बड़े-बड़े लोग ही, ज्ञानी लोग ही काम नहीं कर रहे हैं, तो हम क्यों करें?’

‘अब हो सकता है कि तुमने कुछ विचार करके कहा हो कि मैं कर्म से अपने हाथ वापस खींच रहा हूँ, लेकिन वो लोग तो विचार भी नहीं करेंगे। उनके लिए तो यही खुशखबरी है कि जो ऊपर बैठा है, जो शीर्षस्थ है वो कर्म त्याग कर रहा है तो चलो हम भी त्याग कर देते हैं।‘

न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् । जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान् युक्तः समाचरन् ।।३.२६।।

ज्ञानी व्यक्ति कर्म में आसक्त अज्ञानियों में बुद्धिभ्रम उत्पन्न न करें। बल्कि ज्ञानी व्यक्ति लगन से निष्काम अनुष्ठान करके अज्ञानियों को कर्म में नियुक्त रखें।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय-३, श्लोक २६

तो श्लोक कहता है, ‘ज्ञानी व्यक्ति कर्म में आसक्त अज्ञानियों में बुद्धिभ्रम उत्पन्न…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
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Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org