कर्तव्य बनाम धर्म बनाम अध्यात्म

कर्तव्य, धर्म और अध्यात्म, एक जाग्रत मन के लिए ये तीनों एक होते हैं। लेकिन जब व्यक्ति जागृत नहीं होता तो इनके अलग-अलग अर्थ कर लेता है।

कर्तव्य का अर्थ वो कर लेता है, वो सारे काम जो उसे दुनिया के प्रति करने हैं, परिवार के प्रति करने हैं, समाज के प्रति करने हैं।

हमें बनाने वाली कोई सत्ता है, उनको संतुष्ट रखने के लिए जैसा आचरण करना होता है उस आचरण को क्या नाम दे देता है? धर्म।

आम आदमी की ज़िंदगी में कर्तव्य भी मौजूद होता है, धर्म भी मौजूद होता है, इसीलिए उसके कर्तव्य भी झूठे होते हैं, उसका धर्म भी झूठा होता है और इसीलिए श्री कृष्ण को भी अर्जुन को कहना पड़ा, सारे धर्मों को छोड़कर के मेरी शरण में आओ।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org