करुणा समझ के साथ बढ़ती है
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बोध और करुणा अलग-अलग नहीं चल सकते।
जो जितना समझदार होगा,
जिसकी विचारणा में जितनी गहराई होगी,
जीवन को जो जितना जानता होगा,
उसमें करुणा उतनी ज़्यादा होगी।
और अगर तुम पाओ कि किसी में करुणा नहीं है,
दूसरों के दुःख-दर्द से उसे कोई अंतर नहीं पड़ रहा है,
तो जान लेना — ये अभी मन को,
जीवन को समझता भी नहीं है।
जो खुद को जानेगा वो दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण हो ही जाएगा।
तो दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण होंने का तरीका भी यही है कि अपने मन को समझ लो।
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