कम में मन नहीं मानेगा
प्रश्नकर्ता (प्र): आम लोगों में अध्यात्म की जो बातें चलती हैं वहाँ ‘अल्प’ की भाषा उपयोग की जाती है, और आजकल जैसे कि नए आध्यात्मिक केंद्रों में मिनिमलिज़्म (न्यूनतमवाद), अल्प की भाषा का प्रयोग हो रहा है। तो आचार्य जी, अध्यात्म में इस ‘अल्प’ का अर्थ क्या है?
आचार्य प्रशांत (आचार्य): ‘अल्प’ से मतलब समझना: “जो चीज़ छोटी है उसमें सुख मुझे मिल ही नहीं रहा तो मैं लूँ क्यों छोटी चीज़?” इस दृष्टि से फिर अगर मिनिमलिज़्म आए तो ठीक है। “मैं उस चीज़ का न्यूनतम सेवन करूँगा जिसमें मुझे सुख नहीं मिलता,” फिर तो ठीक है!