कम काम या ज़्यादा काम?

प्रश्न: मैं थोड़ा सोचती ज़्यादा हूँ, काम कम करती हूँ और वो तो सोचते ही नहीं हैं, बस काम करते हैं। इतना ज़्यादा, इतना ज़्यादा, कि अगर काम नहीं है तो बेचैन हो जाते हैं, और मेरा है कि काम तो लास्ट में, जब टाला नहीं जा सकता, उसके पहले पूरा समय आराम से। दोनों ही गलत हैं, मैं ज़्यादा हूँ वो कम हैं, लेकिन उन्हें समस्या ज़्यादा होती है। मेरे से ज़्यादा समस्या होती है क्योंकि वो काम करते रहते हैं, देखते नहीं हैं। जब कभी एक सेकंड के लिए रुकते हैं तो उन्हें नाराज़गी होता है की वो सबके लिए इतना काम क्यों कर रहे हैं, ख़ुद के लिए भी, मेरे लिए भी आख़िर क्यों पागलों की तरह भाग-दौड़ कर रहे हैं, और हम लोग मज़े में हैं। कैसे पता चले ‘उचित कर्म’? वो काम ही करते हैं, जब तक उन्हें कोई फिजिकल एलमेंट नहीं आया! या तो फिर सो जाते हैं। उन्हें कोई काम नहीं रहता तो वो सो जाते हैं।

आचार्य प्रशांत: ये सारी बातें आप गिरेन्द्र जी के बारे में कह रही हैं न?

श्रोता: जी, और उन्हें जब काम नहीं रहता है तो वो सो जाते हैं।

आचार्य जी: आप तनाव में रहते हैं? (श्रोता जिसके बारे में प्रश्न है, उससे पूछते हुए)

प्रश्नकर्ता: नहीं, बिना काम के नहीं रहते। वो काम भागादौड़ी ज़्यादा हो जाता है।

आचार्य जी: काम तो अच्छा है। देखिये, आप गीता शुरू करेंगे, आरम्भिक अध्यायों में ही कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि देखो, जीव पैदा हुए हो तो यही पाओगे कि संसार प्रकृति के तीन गुणों से संचालित है, और यहाँ सब कुछ कर्मरत और गतिशील है। कुछ रुका हुआ नहीं है, तो जब आप ये कहती हैं कि मैं काम नहीं करती, तो काम तो आप तब भी कर रही हैं, बस हो सकता है कि उचित काम कर रही हों। इस संसार में रुकना सम्भव नहीं है, चल सब रहा है। प्रश्न ये नहीं है कि आप चलेंगे के नहीं। चलना तो असम्भ्वावी है। प्रश्न सिर्फ ये है कि आप उचित चल रहे हैं या अनुचित चल रहे हैं, तो बात ये नहीं है कि आप नहीं करती, करती तो आप भी हैं। हो सकता है आप न कर के करती हों, और बात ये भी नहीं है कि वो ज़्यादा करते हैं। ज़्यादा करना कुछ नहीं होता, ना कम करना कुछ होता है। करने में दो ही भेद होते हैं, उचित या?

श्रोतागण: अनुचित।

आचार्य जी: हो सकता है कभी बहुत कम करना उचित हो, हो सकता है कभी बहुत ज़्यादा करना उचित हो। हो सकता है कभी इस दिशा करना उचित हो तो कभी उस दिशा करना उचित हो। पर करना तो पड़ेगा। करना तो? पड़ेगा। कोई ऐसा नहीं है जो जिए और करे ना।

जीवन माने कर्म

आप ये ना पूछिए कि मैं कम क्यों करती हूँ। आप ये पूछिए क्या मैं उचित कर रही हूँ? वो ये ना पूछें, क्या मैं बहुत ज़्यादा करता हूँ? वो ये पूछें कि? उचित कर्म अगर यही है…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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