कम आमदनी के कारण लड़कीवालों और रिश्तेदारों के सामने शर्मिन्दगी
तुम्हें दुख ये नहीं हो रहा है कि उन्होंने तुम्हारी आमदनी के माध्यम से तुमको परखा, तुम्हें दुख ये हो रहा है कि उन्होंने तुम्हारी कम आमदनी के कारण तुमको कम आँक लिया। तुम्हें ये समस्या नहीं है कि कोई इंसान किसी दूसरे इंसान को किसी आँकड़े के आधार पर कैसे आँक सकता है, तुम्हें समस्या ये है जब तुम्हें आँका जा रहा है तो बहुत छोटा आँका जा रहा है। यही वजह है कि तुम रहते इन्हीं दोस्त, यारों और रिश्तेदारों के साथ हो क्योंकि तुम्हारे और उनके रवैये में कोई चीज़ साझा है तभी तो रिश्ता चल रहा है, तभी तो दोस्ती चल रही है।
तुम्हारे और तुम्हारे इन रिश्तेदारों के रवैये में क्या बात साझी है? साझा ये है कि दोनों ही बहुत ताल्लुक रख रहे हो, रूपये से, पैसे से, आदमी का पूरा मूल्यांकन ही कर रहे हो किसी अंक के आधार पर, यही वजह है कि तुम्हारा उनसे रिश्ता बना हुआ है और यही वजह है जब वो तुम्हें भाव, मूल्य नहीं दे रहे हैं तो तुम्हें तकलीफ़ बहुत हो रही है। क्यों तुम उनका सम्मान करते हो? क्यों तुम उनके नज़रियों को महत्व देते हो? क्योंकि वो तुम्हारे ही जैसे हैं, तुम भी आंकड़ों के खिलाड़ी हो, वो भी आंकड़ों के खिलाड़ी हैं।
तुम्हारी समस्या ये नहीं है कि तुम कम कमाते हो, तुम्हारी समस्या ये है कि तुम ऐसे लोगों के साथ हो जो जीवन को आमदनी के तराजू पर तौलते हैं और तुम ऐसे लोगों के साथ इसीलिए हो क्योंकि तुम स्वयं भी कहीं न कहीं आमदनी के तराजू पर ही तोल रहे हो। खेल तो तुमने इसलिए खेला था कि तुम भी आगे-आगे दौड़ो सबसे, अब ये तो संयोग की बात है या कुछ क्षमता की बात है कि तुम पीछे रह गए। तुम पीछे रह गए हो लेकिन हसरत तुम्हारी भी बिल्कुल वही है जो सबसे आगे दौड़ने वाले की है।
अपनी मानसिकता बदलो, लोगों को दोष मत दो, इतनी बड़ी दुनिया है, तुम किस-किस के रुख की परवाह करोगे? और जो लोग इतने व्यर्थ तरीके के हैं, तुम उनके पास पाए क्यों जाते हो?
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