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कमाना तो ज़रूरी है, पर किसलिए और कितना?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी सत्-सत् नमन, आज से एक साल पहले मुझे एक शिविर के द्वारा आपका सानिध्य प्राप्त करने का मौका मिला था। व्यवसाय से मैं एक डेंटिस्ट हूँ, शिविर के पश्चात कुछ महिनों तक मन काफ़ी शांत रहा और यहाँ तक कि अपने व्यवसाय में भी कुछ बदलाव देखने को मिले। जो व्यवसाय कभी अपनी निजी स्वार्थों के लिए किया करता था अब देखा कि कुछ बदल रहा है। गत महीनों में व्यवसायिक व्यस्तता के कारण और घर में उठे मेरे अध्यात्मिक होने के विरोध के कारण स्वयं को परेशान और व्यग्र पाता हूँ। कृपया मार्गदर्शन करें। और क्योंकि मैं एक डेंटिस्ट हूँ और मेरा व्यवसाय पदार्थ के तल का ही है तो क्या ये मेरी अध्यात्मिक प्रगति में अवरोध उत्पन्न करता है?

आचार्य प्रशांत: भाई, सब प्रवचन तो नहीं दे सकते न? सुनेगा कौन? और जो प्रवचन दे रहे हैं उनका भी दांत दर्द कर रहा हो तो बोलेंगे कैसे?

तो ये अध्यात्म में भी प्रवचन वगैरह चलता रहे इसके लिए डेंटिस्ट ज़रूरी है। ये दुनिया के सब कामकाज भी तो ज़रूरी हैं न?

मैं भी यहाँ बैठा-बैठा हर समय प्रवचन थोड़े ही देता रहता हूँ कि कभी आप यूँ ही घूमते-टहलते, दीवार फाँद कर आएँ, रात में तीन-चार बजे, और पाएँ कि आचार्य जी यहीं बैठे हुए हैं और बक-बक, बक-बक बोलें ही जा रहे हैं। और भी ग़म है ज़माने में प्रवचन के सिवा, हाँ?

तो बहुत और काम रहते हैं, जैसे आप अपनी डेंटिस्ट्री करते हैं मेरे पास भी मेनेजमेंट के बहुत काम हैं, करता हूँ। ये थोड़े ही है कि यहाँ से उठ कर गया तो कुछ समाधी में अचानक विलुप्त हो गए और फिर जिस दिन सत्र है…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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