कभी भी अन्याय मत करो
प्रश्नकर्ता: अन्याय को सहना कितना ग़लत है जब पता हो कि अन्याय हो रहा है और मजबूरी है कि आवाज़ नहीं उठा सकते?
आचार्य प्रशांत: 'न्याय' शब्द समझिएगा। 'न्याय' शब्द का अर्थ होता है, साधारण भाषा में, जिस चीज़ को जहाँ होना चाहिए, उसका वहीं होना। जो चीज़ जहाँ हो, अगर वहीं है, तो न्याय है। तो अध्यात्म की दृष्टि से अन्याय सिर्फ़ एक होता है – मन का आत्मा से विमुख हो जाना। मन को कहाँ होना चाहिए?
श्रोतागण: अपने केंद्र पर।
आचार्य: अपने केंद्र पर। केंद्र का नाम?
श्रोता: आत्मा।