कब हटेगी हिंसा?

कहता हूँ कहि जात हूँ, कहा जु मान हमार।
जाका गल तुम काटिहो, सो फिर काटि तुम्हार।।

~ संत कबीर

जिसका गला तुम काट रहे हो, वो फ़िर तुम्हारा गला काट रहा है।

हम अपनेआप को जो समझते हैं, जो जानते हैं, वो काटने के अलावा कुछ और कर नहीं सकता क्योंकि कटा होना ही उसका अस्तित्व है। इतना ही कह रहे हैं कबीर कि दूसरे को काटने के लिए पहले तुम्हें दूसरे से कटना पड़ेगा। दूसरे के साथ कुछ भी करने के लिए…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org