कब घटित होती है गीता?

कब घटित होती है गीता?

यावदेतानिरीक्षेऽहं योद्धकामानवस्थितान्।

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥22॥

“मैं इन सब युद्ध करने की कामनाओं से अवस्थित योद्धाओं को देखूँ कि किन वीरों के साथ मुझे युद्ध करना होगा।”

~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक २२, अध्याय १, अर्जुन विषाद योग

आचार्य प्रशांत: क्या जानते नहीं हैं अर्जुन कि किनके साथ युद्ध करना होगा? अचानक नींद से जगकर स्वयं को युद्ध स्थल में पा रहे हैं? नहीं, यहाँ पर देखने का अर्थ गहरा है — मैं उनको समझूँ, मैं उनको क्या समझूँ मैं अपनी स्थिति को समझूँ, मैं किसके विरुद्ध खड़ा हूँ।

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥21॥

यावदेतानिरीक्षेऽहं योद्धकामानवस्थितान्।

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥22॥

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।

धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेयुद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥23॥

“हे कृष्ण! बीचों-बीच ले चलिए मेरा रथ, मैं इन सब को देखना चाहता हूँ जिनके साथ मुझे युद्ध करना होगा। इस युद्ध में दुष्ट बुद्धि वाले धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन का प्रिय कार्य करने के इच्छुक जो राजा लोग यहाँ उपस्थित हैं, उन युद्धार्थियों को मैं देख तो लूँ।”

~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक २१-२३, अध्याय १, अर्जुन विषाद योग

आचार्य : सब पता है कि ये दुष्ट बुद्धि है, लेकिन फिर भी उसे मारने का मन नहीं है। क्षमा, उदारता, एक आर्द्रता, एक कोमलता; “बहुत दुष्ट है, इसे गहरा दंड मिलना चाहिए, इसको नष्ट ही कर दूँ मैं, पर बार-बार छोड़ता रहता हूँ।”

ये पहली बार नहीं हो रहा, दुर्योधन को छोड़ देने की बात। पहले भी कम-से-कम दो अवसरों पर अर्जुन ने कौरवों को क्षमादान दिया। एक बार तो यहाँ तक हुआ कि कौरव फँसे हुए थे तो पांडवों ने जा करके उनकी जान बचाई। ऐसा आप तभी कर सकते हो जब आपके लिए बदले, प्रतिशोध से ऊपर कुछ हो और बस इसी बात का कृष्ण को आसरा है। वो कह रहे हैं, “आम-आदमी के लिए ये सब चीज़ें बहुत बड़ी होती हैं, जैसे पशुओं के लिए ये सब बहुत बड़ी बातें होती हैं — स्वार्थ, सत्ता, सुख, प्रतिशोध। ये सब पशुओं के लिए बड़ी बातें होती हैं। कोई ऐसा मिला है जिसके लिए प्रतिशोध से बड़ा कुछ है, ये व्यक्ति थोड़ी संभावना दिखा रहा है, इसके साथ कुछ आशा बंध रही है कि फिर जो सबसे बड़ा है ये उस तक भी पहुँच सकता है; कम-से-कम ये ज़मीन से थोड़ा तो उठा।”

आप ज़मीन पर बीज डाल दें बहुत सारे और वो बीज ऐसे वृक्ष के हैं जो न जाने कितने मीटर ऊपर जाता है — दस मीटर, बीस मीटर, बहुत ऊँचा हो जाता है। और उनमें से किसी बीज से…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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