कन्यादान विवाद: हिंदुओं की कुप्रथा, या लिबरल्स का दोगलापन!
प्रश्नकर्ता: सर, अभी ‘मान्यवर’ — जो कपड़े बनाने वाली कंपनी है — उनका एक विज्ञापन आया है जिसमें आलिया भट्ट नाम की अभिनेत्री हैं, और विज्ञापन में वो कह रही हैं कि, ‘मैं कोई चीज़ थोड़े ही हूँ, मैं कोई प्रॉपर्टी थोड़े ही हूँ कि मेरा दान किया जाएगा?’
तो अपने पिता से कह रहीं हैं कि ‘मेरा कन्यादान मत करिए।‘ तो इस बात पर काफ़ी विवाद हो गया है और कुछ लोग इस बात को बहुत प्रगतिशील मान रहे हैं, कुछ लोग इस बात का विरोध कर रहे हैं। सर, इस पर कुछ कहिए।
आचार्य प्रशांत: एक कहानी है पुरानी, कि एक बार सूप और छलनी चले आ रहे थे साथ में — सूप जानते हो? अगर थोड़ा पुराने समय से अभी सम्बन्ध रखते हो या गाँव कभी गए हो तो सूप देखा होगा। (सूप चलाने का इशारा करते हुए) वो इस्तेमाल होता है चावल में से, गेहूँ में से कंकड़-वंकड़ निकालने के लिए — तो महिलाएँ सूप का इस्तेमाल कर रहीं होती हैं; अब पता नहीं होता है कि नहीं। और छलनी जानते हो? — उसमें बहुत सारे छेद होते हैं, और उसमें भी दाल वगैरह रखकर उसको हिलाया जाता है, तो उसमें जो छोटे कण होते हैं वो सारे नीचे गिर जाते हैं और जो बड़े-बड़े कण होते हैं — जिस भी चीज़ के हैं — वो ऊपर रह जाते हैं।
तो सूप और छलनी जा रहे थे। तो उनको रास्ते में एक आदमी दिख गया, उस आदमी की धोती में छेद था। तो छलनी उसको देख करके ज़ोर-ज़ोर से हँसने लग गई कि ‘देखो, इसके तो छेद है, इसके तो छेद है।‘ तो पूरब की तरफ़ की कहावत है, आदमी बोलता है कि ‘सुपवा बोले तो बोले, छलनिया का बोले जा में छेद-ही-छेद।’