कड़वे अनुभवों के बाद भी कामवासना मरती क्यों नहीं?
शरीर को तो सदा गति करनी ही है। शरीर अपने जैविक संस्कारों का और प्रकृतिगत गुणों का दास है। शरीर तो चलेगा — ‘चलती का नाम गाड़ी’। तुम शरीर को मान लो कि जैसे एक गाड़ी है जिसको चलना-ही-चलना है। श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय और तीसरे अध्याय में भी श्रीकृष्ण, अर्जुन से स्पष्ट कहते हैं कि, “प्रकृति में ऐसा कुछ नहीं है जो गति ना कर रहा हो,” — गति ना कर रहा हो माने, ‘कर्म’ ना कर रहा हो — “तो तुझे भी अर्जुन कर्म…