कड़वे अनुभवों के बाद भी कामवासना मरती क्यों नहीं?
शरीर को तो सदा गति करनी ही है। शरीर अपने जैविक संस्कारों का और प्रकृतिगत गुणों का दास है। शरीर को अगर एक गाड़ी मानिए तो इस गाड़ी को तो गति करनी ही है, कर्म करना ही है,चलना तो है ही। लेकिन जब हम मनुष्य की बात करते हैं तो उसकी ये जो गाड़ी है, ये पूरे तरीके से स्वचालित नहीं है।
आदमी के पास दो तरह की ताकतें हो जाती है, एक तो जो उसकी गाड़ी के भीतर पहले से ही संस्कार बैठे हुए हैं जो उसको…