कड़वे अनुभवों के बाद भी कामवासना मरती क्यों नहीं?

शरीर को तो सदा गति करनी ही है। शरीर अपने जैविक संस्कारों का और प्रकृतिगत गुणों का दास है। शरीर को अगर एक गाड़ी मानिए तो इस गाड़ी को तो गति करनी ही है, कर्म करना ही है,चलना तो है ही। लेकिन जब हम मनुष्य की बात करते हैं तो उसकी ये जो गाड़ी है, ये पूरे तरीके से स्वचालित नहीं है।

आदमी के पास दो तरह की ताकतें हो जाती है, एक तो जो उसकी गाड़ी के भीतर पहले से ही संस्कार बैठे हुए हैं जो उसको एक खास तरीके से चलाना चाहते हैं। लेकिन चालक भी बैठा हुआ है, उसके पास ये काबिलियत है कि वो इस गाड़ी को सही दिशा दे, सही मोड़ दे, सही गति दे, उसके पास ये काबिलियत नहीं है कि गति को रोक दे। युवा व्यक्ति का शरीर उसके लिए ये बात लगभग अनिवार्य कर देता है कि वो स्त्रियों की तरफ आकर्षित होगा ही, यही बात स्त्रियों पर भी लागू होती है कि वो पुरषों की तरफ आकर्षित होंगी ही। लेकिन इस पूरे प्रसंग में आप चेतना की बात नहीं करते।

मैं एक उदहारण लेता हूँ — तुम्हारे सामने कोई स्त्री हो, एकदम ही बेहूदी हो, उलटी-पुलटी बातें करती हो, गिरा हुआ उसका आचरण हो, झूठी हो, मक्कार हो, धोखेबाज़ हो, हिंसक हो, तो भी क्या तुम उसकी ओर आकर्षित होते हो? सब स्त्रियों की ओर तुम आकर्षित नहीं हो जाते, कुछ तो तुम उसका गुण और ज्ञान भी देखते हो न?

शरीर, शरीर की ओर बढ़ना चाहता है, चेतना का काम है, चेतना की ओर बढ़ना। आप शरीर भी है, आप चेतना भी है, सवाल ये है कि आप ज़्यादा क्या है? अगर आप ज़्यादा शरीर है तो आप जानवर हो गए।

ऐसे हो जाओ कि तुम्हें किसी भी दूसरे व्यक्ति में वास्तविक सौंदर्य खोजना है, सच्चाई खोजनी है, करुणा खोजनी है, बोध खोजना है। इसके बाद अगर वो व्यक्ति स्त्री है तो स्त्री भली, पुरुष है तो पुरुष भला, फिर कोई इसमें दिक्कत की बात नहीं है। अध्यात्म विरोधी नहीं है स्त्री-पुरुष के मिलन का, अध्यात्म बस ये कहता है कि जिन कारणों से एक आम स्त्री और एक आम पुरुष मिलते है और जोड़ा बनाते हैं, वो कारण ही मूलतः बहुत अनिष्टकारी है। जब रिश्ते की शुरुआत ही गलत हो रही है तो फिर उस बीज से विष-वृक्ष ही बनेगा और उसमें विष-फल ही फलेंगे।

आदमी और औरत आपस में परस्पर व्यवहार करेंगे ही, दो लिंग है उनका आपस में रिश्तेदार होगी, बातचीत होगी, व्यवहार होगा, ये तो होना है। प्रश्न एक ही है क्रेंद्रीय, किस आधार पर तुम दूसरे का चयन कर रहे हो? किस आधार पर तुम दूसरे से व्यवहार बना रहे हो? किस आधार पर तुम दूसरे से रिश्ता रख रहे हो? आधार ठीक रखो, बाकी सब अपने आप ठीक रहेगा। जो मूल चीज़ है उस पर ध्यान दो, कौन है जो रिश्ता बना रहा है? किस कारण से रिश्ता बना रहा है? अतः किसके साथ रिश्ता बना रहा है?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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