कठिन परिस्थितियों में ज्ञान काम क्यों नहीं आता?

कठिन परिस्थितियों में ज्ञान काम क्यों नहीं आता?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, बताया तो बहुत गया है कि विषम परिस्थितियों में भी व्यवहार कैसा करें पर जब वैसी विपरीत या विषम परिस्थितियाँ सामने आती हैं, तब सारा ज्ञान हिरा जाता है (खो जाता है) और आदमी अपना आपा खो बैठता है।

आचार्य प्रशांत: वह तो होगा ही, ज्ञान से थोड़े ही कुछ होता है, साधना करनी पड़ती है न। साधना करनी पड़ती है। ज्ञान साधना का विकल्प नहीं हो सकता, ज्ञान साधना में सहायक हो सकता है। ज्ञान मिल गया, अब साधना करो।

कोई भी परिस्थिति सामने आ करके तुमको कंपित इसीलिए कर देती है क्योंकि तुमने उस परिस्थिति से कोई स्वार्थ जोड़ रखा होता है। परिस्थिति से स्वार्थ जोड़ लिया, परिधि से स्वार्थ जोड़ लिया और वो स्वार्थ पूरा होगा नहीं, किसी का आज तक हुआ नहीं। जब होता नहीं है तो तुम पर गाज गिरती है, एकदम डर जाते हो कि यह क्या हो गया।

सोच रहे हो कि सवेरा होगा तो आसमान से फल गिरेंगे, कुछ भी सोच सकता है आदमी। सवेरा हुआ, फल तो गिरे नहीं, पत्थर बरस गए तो बुरा तो लगेगा न, लगेगा न? परिस्थितियों को अगर परिस्थिति ही रहने दो तो बाहर कितने भी आँधी-तूफान चल रहे हों, भीतर कोई बवंडर नहीं उठेगा। तुम परिस्थितियों को आंतरिक स्थिति बना लेते हो। तुम बाहर के मामले को भीतर बैठा लेते हो। बाहर अगर कुछ दिख गया उत्तेजक, तो तुमको लगता है कि वह भीतर की अपूर्णता भर देगा। बाहर अगर आ गया कुछ कठिन, तो तुमको लगता है कि वह भीतर कुछ तोड़ देगा। और बाहर अगर आ गया कुछ अनुकूल, तो तुम्हें लगता है वह भीतर कुछ जोड़ देगा।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org