ऐसे होते हैं उपनिषदों के ऋषि
12 min readDec 21, 2020
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आचार्य प्रशांत: थोड़ी विचित्र है मनुष्य की स्थिति। रहना उसे शरीर में ही है, रहना उसे जगत के साथ ही है। पर सिर्फ़ शरीर बनकर रहता है तो मौत का डर सताता है, अपने चारों तरफ़ और ऊपर और नीचे अगर सिर्फ़ जगत को ही पाता है तो बेचैन हो जाता है, न शरीर छोड़ सकता है, न दुनिया छोड़ सकता है, न शरीर और दुनिया में वो चैन पाता है। ये वो मूल समस्या है जिसे उपनिषद् संबोधित करते हैं।