ऐसे तो हम जीते हैं

ऐसे तो हम जीते हैं-

चाहिए कुछ
माँग रहे हैं कुछ और

चाहिए शांति
दौड़ रहे हैं पैसे के पीछे

चाहिए प्रेम
दौड़ रहे हैं पद के पीछे

चाहिए समर्पण
दौड़ रहे हैं अहं के पीछे

और कहते हैं ,
“कहीं कुछ गड़बड़ ज़रूर है!
ससुरी शांति नहीं मिलती
मन उद्विग्न सा रहता है।”

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org