ऐसा साथी ढूँढो
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। आचार्य जी, मैं आपको पिछले लगभग एक साल से सुन रहा हूँ। जैसा कि आपने कई वीडियोज़ में बोला भी है कि एक आम इंसान के जीवन में कुछ चीज़े हैं जो उसके जीवन की दिशा निर्धारित करती हैं। उनमें से जैसे — नौकरी और विवाह।
तो मेरा प्रश्न विवाह से सम्बन्धित है। जैसे कि समाज ने एक व्यवस्था बनायी हुई है विवाह, बेसिकली (मूलतः) वो व्यवस्था — जैसे और जानवर हैं रिप्रड्यूस (प्रजनन) करने के लिए, उसी को एक व्यवस्थित तरीक़े से करने के लिए हम नब्बे प्रतिशत लोग जो हैं, उससे ज़्यादा ही बल्कि विवाह के बंधन में बंधते हैं।
तो मुझे आपसे सुनने के बाद कहीं-न-कहीं ये बात पता भी है कि अगर आप आध्यात्मिक रास्ते पर, सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहते हैं तो विवाह में बंधना एक बंधन है। लेकिन अगर एक किसी इंसान को विवाह में, मतलब इस वैवाहिक जीवन में जाना भी है तो ख़ुद में और अपने जीवनसाथी में क्या पात्रता देखनी चाहिए जिससे की वो सच्चाई के रास्ते पर चल सके?
आचार्य प्रशांत: तुम्हारे जीवन साथी को भी विवाह से उतनी ही अरुचि होनी चाहिए जितनी तुम्हें है। शादी तब करो जब शादी न उसे करनी हो, न तुम्हें करनी हो। तुम बोलो, करनी है और वो बोले, नहीं करनी है। वो बोले, करनी है। तब तुम बोल दो, नहीं करनी है। जब दोनों बिलकुल हठ करके बोल रहे हों, ‘नहीं करनी है, नहीं करनी है, नहीं करनी है’, तब करो। जो कोई आतुर हो शादी के लिए, उससे तो ऐसे भागना जैसे भूत से भागते हैं। मुझे देखो, बिलकुल कोई समस्या नहीं है विवाह वगैरह से। ठीक है। बहुत बार बोल चुका हूँ।