ऐसा प्रेम खतरनाक है
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, बहुत लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपना जीवन औरों को समर्पित किया है। उन्हें हम महात्मा कहते हैं, हीरो कहते हैं, अवतार कहते हैं, महापुरुष कहते हैं। इन लोगों ने औरों को अपने आप से ऊपर रखा है। लेकिन मैंने अपने कुछ लोगों का एक दायरा बनाया हुआ है, मेरा निकट परिवार। इसके अलावा मैं किसी और के लिए संवेदना नहीं रखता, चाहे वो और लोग हों, चाहे जानवर हों या बाहर का कोई भी। क्या ये गलत है? और क्या इसको ठीक करा जा सकता है? क्या इसको ठीक करना जरूरी…