ऐसा घर जहाँ राम धुन लगातार बजती ही रहती है

तीन तरह के लोग हुए, तीन तरह के मन हुए: एक वो, वो पढ़ते भी हैं तो भी पढ़ने के दरमियान भी भज नहीं पाते। आँखें पढ़ रही हैं, आँखें शब्दों को, दृश्यों को, चित्रों को देख रही हैं, मन उनका अनुवाद कर रहा है और बस इतना ही हो रहा है। ९५% लोग, ९५% समय ऐसे ही पढ़ते हैं, आँखों से और मन से। आँखों ने शब्द को देखा, शब्द एक चित्र है, आँखों ने शब्द को देखा, मन ने उसका अपनी परिचित भाषा में अनुवाद कर दिया और बात खत्म हो गयी। बुद्धि ने आकर निर्णय सुना दिया कि तुम समझ गए। मन संतुष्ट होकर के आगे बढ़ गया, अगले शब्द पर पहुँच गया, ये हमारा आम पढ़ना है।

बाँकी लोग, बाँकी समय, बाँकी मन ऐसा पढ़ते हैं और याद रखिएगा मैं शेष पाँच प्रतिशत की बात कर रहा हूँ १/२०, ये बीस में से जो एक व्यक्ति है वो ऐसे पढ़ता है कि जब पढ़ रहा है उस समय, कम से कम उस समय डूब गया है पढ़ने में। अब आँखें शब्दों को देख रही हैं, मन उनका अनुवाद कर रहा है पर प्रक्रिया बस इतनी सी ही नहीं है, कुछ और भी है जो होने लग गया है। और मज़ेदार बात ये है कि अब जो कुछ होने लग गया है वो बाँकी सब होने का अवसान है। अब पार्श्व में जो घटना घटने लग गई है वो बाँकी सारी घटनाओं का रुक जाना है।

आँखें देख रही हैं, मन स्मृति से उसको जोड़ रहा है, शब्दों के अर्थ पकड़ रहा है, अनुवाद कर रहा है, बुद्धि विशलेषण भी कर रही है और कुछ और भी है जो होने लग गया है। जिसका सम्बन्ध न पढ़े जा रहे शब्द से है, न अतीत की स्मृति से है, न भाषा से है, न विशलेषण से है। एक धुन बजने लग गयी है, बड़ी महीन, बाँकी सब जो हो रहा था वो रुक सा गया है। मन का इधर-उधर का भटकना रुक…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org