ऐसा कर्म जो आज़ादी दे दे

ऐसा कर्म जो आज़ादी दे दे |

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् |
कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै: || ३, ५ ||

कोई भी मनुष्य किसी भी समय में क्षणमात्र भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता है; क्योंकि प्रत्येक मनुष्य प्रकृति से उत्पन्न गुणों द्वारा विवश होकर कर्म करता ही है।
— श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३, श्लोक ५

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org