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एक विशेष प्रकार का चिंतन है अध्यात्म

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मन जैविक रूप से और सामाजिक रूप से संस्कारित होता है दुनिया भर का चिंतन करने के लिए, कुछ भी नहीं है ऐसा मन के पास जो मन को प्रेरित करे अपने भीतर जाने के लिए। मन के पास कोई कारण नहीं है कि वो अपना विषय स्वयं को ही बना ले। पूरा विश्व मन का विषय है और यही मन की प्राकृतिक वृत्ति होती है। मन के पास कोई प्रेरणा, कोई कारण नहीं होता, कोई वजह नहीं होती कि मन अपने भीतर जाए और पूछे ये सोच क्या चीज़ होती है? क्या विचार स्वयं के बारे में विचार कर सकता है? ये विचार ही नहीं आता मन को।

आप जब पूछोगे अपने आपसे, ये आँखें क्यों बाहर देख रही है? अचानक से अभी मैं चौंक क्यों गया? फलाना दृश्य देख करके मेरे ऊपर ऐसा प्रभाव क्यों पड़ता है? मैं हर समय कुछ पाने के लिए आतुर क्यों रहता हूँ? इस तरह के चिंतन से सत्य के साथ अभिन्नता स्थापित होती है, साधारण चिंतन से नहीं। शिक्षा की वो शाखा जो आपको ये खास चिंतन करना सिखाती है, उसी का नाम है अध्यात्म। दुनिया भर की सारी शिक्षा और सारे संस्कार आपको चिंतन तो ज़रूर देते हैं, पर वो सारा चिंतन बहिर्मुखी होता है। मन जब मन का ही चिंतन करने लग जाए, इसको अध्यात्म कहते हैं। ये आपको सत्य की तरफ ले जाता है।

जैसे-जैसे आपका चिंतन गहराएगा, वैसे-वैसे चिंतन शांत होता जाएगा। आध्यात्मिक चिंतन की विशेषता ये होती है कि उसमें जितनी गहराई आती जाती है, वो उतना ही शांत होता जाता है, एक तरह से वो विश्राम में जाता है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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