एक वायरस बाहर का, एक वायरस भीतर का

एक वायरस बाहर का, एक वायरस भीतर का

प्रश्नकर्ता: नमस्कार, आचार्य जी।

सरकार और जितने भी चिकित्सा प्रमुख हैं, जानकार हैं, उन्होंने एक बात साफ-साफ कह दी है कि इस बीमारी का निवारण बहुत साफ है — ‘सोशल डिस्टन्सिंग’। जबतक एंटीडोट नहीं आ जाता और उसको न जाने कितने साल लगेंगे, तब तक आप एक दूसरे से दूर रहें और किसी भी तरह की सांस्कृतिक गति-विधि में शामिल ना हों। बहुत सीधी सपाट बात है परंतु न जाने क्यों, लोगों की क्या माया है, कैसा उनका मन है कि इस साफ़ बात का भी पालन नहीं कर पा रहे हैं। अब ये जो मन है, जो एक सीधे से आदेश का पालन नहीं कर पा रहा है उसको समझने के लिए आपके समक्ष बैठा हूँ। और एक-एक करके कुछ बातों को उठाएंगे, देखेंगे कि क्या केंद्र में है जो इस समस्या को सुलझने नहीं दे रहा है।

सबसे पहले, कल ही जो भारत के प्रधानमंत्री हैं उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करके पूरे देश को संबोधित किया और जिस फेसबुक-लाईव पर वो बोल रहे थे, उन्होंने कहा कि इस तरीके से अब पूरे भारत को बंद किया जा रहा है, उसी फेसबुक ब्रॉडकास्ट में एक कमेंट था जहाँ पर एक अनुयायी ने, किसी बड़े संत जन के अनुयायी ने लिखा हुआ था कि “ये सब आप किनारे रखिए, इस बीमारी का निवारण तो फलाना जो संत हैं, जो बाबा जी हैं, उन्हीं के पास है”, अब ये जो मन है, ये तो सड़कों पर भी आएगा और गुणगान करेगा, और बीमारी का तीसरा चरण क्या, चार क्या, हमें पाँच क्या छठे तक ले जाएगा। इस मन का क्या समाधान है, तत्काल समाधान?

आचार्य प्रशांत: देखिए, इसी मन को मूर्खता कहते हैं, इसी मन को अधार्मिकता कहते हैं, इसी मन को हिंसा भी कहते हैं — ये सब आपस में मिली-जुली बातें हैं।

जब विज्ञान इस बारे में साफ है, जब दुनिया भर के वैज्ञानिक, चिकित्सक, शोधकर्ता सब एक स्वर में कह रहे हैं कि अभी समय लगेगा इस बीमारी की दवाई को विकसित होने में, टीका (वैक्सीन), हो सकता है कि साल ले ले, दो साल ले ले, उससे पहले भी अभी डेटा, जानकारी और चाहिए ताकि तात्कालिक उपचार के लिये भी जो दवाइयाँ वगैरह दी जानी हैं, उनको भी तय किया जा सके, तो अभी समय चाहिये मानवता को। हम किसी तरीके से समय बचाने की कोशिश कर रहे हैं। जिसे कहते हैं न ‘बाइंग टाइम’, इससे पहले कि हम पूरे तरीके से इस बीमारी की चपेट में आ जाएँ, करोड़ों लोग चपेट में आ जाएँ, अरबों लोग चपेट में आ जाएँ, उससे पहले समय थोड़ा और मांग लो — जो ग्राफ है, समय के साथ संक्रमित लोगों की संख्या का, वो ग्राफ बिलकुल फ़न उठाए नाग की तरह ना दिखे।

संख्या तो लोगों की बढ़नी ही है, संक्रमित लोगों की, अभी पूरी कोशिश बस इस बात की हो रही है कि वो जो संख्या की बढ़ोतरी है, वो बहुत तेज़ी से ना हो, वो जो कर्वे है, वो जो ग्राफ है, उसकी ढलान एकदम खड़ी ना हो, क्योंकि ये भी हो सकता है कि…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant