एक मुर्गे से सीख लेते थे आचार्य प्रशांत?

प्रश्नकर्ता: मुझे आपके गुरु के बारे में जानना था। आपने एक वीडियो में बताया था कि आपके टीचर एक मुर्गे हुआ करते थे। उनका नाम ‘जीतू’ था। तो उन्हीं के बारे में जानना था।

आचार्य प्रशांत: नहीं, ऐसा नहीं है कि जैसे लोग किसी को अपना गुरु मानते हैं, उसी अर्थ में मैंने जी-२ मुर्गे को गुरु मान रखा था।

बहुत सारी बातें हैं जो अपने बारे में पता चल जाती हैं — अगर प्रकृति को देख रहे हो। प्रकृति के पास जाने से फायदे ही यही हैं न? एक तो ये पता चल जाता है कि अपनी वृत्तियाँ कैसी हैं, और दूसरा ये पता चल जाता है कि जिसको हम अपना मन या अपनी हस्ती कहते हैं, उसमें से कितना कुछ प्राकृतिक नहीं है, सामाजिक है। तो बहुत सारे जानवर रहे हैं मेरे साथ, अभी भी हैं, उनमें से एक जी-२ भी था।

उसका नाम ‘जीतू’ नहीं था, उसका नाम था ‘जी-2’। क्यों था? क्योंकि उसका वास्तविक नाम था ‘जी-जी’, बाद में जी-जी बन गया ‘जी-2’। अब जी-जी क्या होता है? जो लोग उन दिनों बोधस्थल में रहे हैं, वो जानते हैं कि जी-जी में पहला ‘जी’ तो ‘जनरली’ था, दूसरा ‘जी’ मैं लिहाज़ के नाते थोड़ा बदलकर बता देता हूँ — ‘जनरली गुमशुदा’।

तो वो क्या करता था कि चल रहा है — सीधा चलता जा रहा है, और जाकर खंबे से टकरा जाए। ऐसा नहीं था कि उसकी आँखों में कोई समस्या थी। तो मैं बैठा देखता रहूँ। ये करने में मुझे बड़ा आनंद रहता है कि देखो चल क्या रहा है! उसको देखूँ मैं — वो चलता जा रहा है, गमले हैं, बाकी सब चीज़ें हैं, वो चलता गया, बीच में खंबा खड़ा है, जाकर उससे भीड़ गया। और फिर परेशान हो रहा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org