एक ठसक, एक आग होनी चाहिए
10 min readNov 13, 2022
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प्रश्नकर्ता (प्र): मैं अपने जीवन को देखता हूँ तो मैं दुनिया की चीज़ों से ही घिरा हुआ पाता हूँ अपने-आपको। अगर मैं अपने मन को कभी काम से हटाता हूँ तो उसमें सिर्फ़ दुनिया ही घूम रही होती है; दुःख तो मिलता है उससे, तो व्यवहारिक तौर से इससे फिर निकला कैसे जाए?
आचार्य प्रशांत (आचार्य): ऊँचा माँगो न, ऊँचा।
देखो छोटे-मोटे सुख तो दुनिया में मिलते ही हैं, तभी तो दुनियादारी कायम रहती है। दुनिया से अगर तुम…