एक ठसक, एक आग होनी चाहिए

प्रश्नकर्ता (प्र): मैं अपने जीवन को देखता हूँ तो मैं दुनिया की चीज़ों से ही घिरा हुआ पाता हूँ अपने-आपको। अगर मैं अपने मन को कभी काम से हटाता हूँ तो उसमें सिर्फ़ दुनिया ही घूम रही होती है; दुःख तो मिलता है उससे, तो व्यवहारिक तौर से इससे फिर निकला कैसे जाए?

आचार्य प्रशांत (आचार्य): ऊँचा माँगो न, ऊँचा।

देखो छोटे-मोटे सुख तो दुनिया में मिलते ही हैं, तभी तो दुनियादारी कायम रहती है। दुनिया से अगर तुम…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org